Google

Saturday, May 10, 2014

A poem on mother, written by Dr. K Tripathi

  माँ मेरी प्यारी माँ 

माटी की दिया सी मेरी प्यारी  माँ 
तुम जलती हो लौ बन कर
अपनी ममता पिघला कर 
और रौशन करती दु निया माँ 
मेरी प्यारी माँ  

तुम्हारे जगने से सुबह होती है 
सूरज को अर्घ्य देती मेरी माँ 
साँझ को सांध्य दीप जला कर 
सृष्टी में उजाला भर देती हो माँ 
मेरी प्यारी माँ 

हमारा उठना बैठना रोना हंसना
बचपन के खेल हो या रूठना 
तुम्हारे दिल पर छपा है माँ 
मेरी प्यारी माँ 

तुम क्या हो शायद तुम्हे पता नही
तुम्हारे सब होने क हमे पता है माँ 
राम हो कृष्ण हो ईसा हो या पैग़ंबर
तुम्ही ने ईश्वरत्व दिया है उनको माँ 
मेरी प्यारी माँ

अपनी ममता के घेरे में रख कर 
तुमने ही तो हमे बनाया है माँ 
हम तभी तक हैं जब तक तुम हो 
अन्यथा हम अनाथ हो जायेंगे माँ 
मेरी प्यारी माँ 

माटी की दिया सी मेरी प्यारी  माँ 
तुम जलती हो लौ बन कर
अपनी ममता पिघला कर 
और रौशन करती दु निया माँ 
मेरी प्यारी माँ  



Tuesday, March 8, 2011

धीरे धीरे रे मना धीरे सब कुछ होये,
माली सीन्चे सौ घड़ा, ऋतु आये फ़ल होये